रामायण में राम-रावण एक-दूसरे के शत्रु थे, लेकिन बृज (मथुरा) के एक परिवार में राम-रावण सब भाई-भाई हैं। यही नहीं, विश्वामित्र से लेकर मारीच का भी भाई-भाई का नाता है। जी हां, यह कहानी है बृज के शर्मा परिवार की जो पांच पीढ़ियों से रामायण के पात्रों को रामलीला के मंच पर जीता आ रहा है। इन दिनों यह परिवार रामलीला बाजार में हो रही रामलीला में मंचन के लिए आया हुआ है।
शर्मा परिवार के एक सदस्य प्रेमचंद शर्मा राम का किरदार निभाते हैं। जबकि, उनके चचेरे भाई घनश्याम शर्मा रावण का रोल करते हैं। मौसेरे भाई विश्वामित्र बनते हैं तो भांजा देवदत्त शर्मा लक्ष्मण की भूमिका निभाता है। भतीजा कृष्ण गोपाल भरत का रोल अदा करता है। प्रेमचंद के बड़े भाई रामशरण शर्मा श्रीपुष्टिमार्गीय बृजरासलीला रामलीला संस्थान के संयोजक हैं। इन्हीं की देखरेख में यह मंडली काम करती है। यह लगातार दूसरे साल है जब यह परिवार दून में मंचन करने आया है। प्रेमचंद बताते हैं कि यह परंपरा उनके परदादा गोपीजन बल्लभ ने शुरू की थी।
इसके बाद उनके दादा ज्ञासी राम शर्मा और फिर उनके पिता गोक्लेश शर्मा ने भी इसे चालू रखा। इसके बाद प्रेमचंद और उनके बड़े भाई रामशरण शर्मा और अब उनके पुत्र कृष्ण गोपाल शर्मा व अभय शर्मा भी इसी मंडली में आ गए हैं। यह मंडली कृष्णलीला का मंचन भी करती है।
रामलीला में रावण और कृष्णलीला में कंस
यूं तो शर्मा परिवार बहुमुखी प्रतिभा का धनी है, लेकिन घनश्याम शर्मा के अभिनय का लोहा मथुरा से लेकर पूरे देश में इस तरह के मंचन में माना जाता है। जहां तक रामलीला की बात है तो वे दशरथ, परशुराम और रावण तीनों का अभिनय करते हैं। जबकि, कृष्णलीला में वे कंस के रूप में खूब सराहे जाते हैं। एक और खास बात है कि इस परिवार के सभी सदस्यों को सारे संवाद कंठस्थ हैं।
शर्मा परिवार के एक सदस्य प्रेमचंद शर्मा राम का किरदार निभाते हैं। जबकि, उनके चचेरे भाई घनश्याम शर्मा रावण का रोल करते हैं। मौसेरे भाई विश्वामित्र बनते हैं तो भांजा देवदत्त शर्मा लक्ष्मण की भूमिका निभाता है। भतीजा कृष्ण गोपाल भरत का रोल अदा करता है। प्रेमचंद के बड़े भाई रामशरण शर्मा श्रीपुष्टिमार्गीय बृजरासलीला रामलीला संस्थान के संयोजक हैं। इन्हीं की देखरेख में यह मंडली काम करती है। यह लगातार दूसरे साल है जब यह परिवार दून में मंचन करने आया है। प्रेमचंद बताते हैं कि यह परंपरा उनके परदादा गोपीजन बल्लभ ने शुरू की थी।
इसके बाद उनके दादा ज्ञासी राम शर्मा और फिर उनके पिता गोक्लेश शर्मा ने भी इसे चालू रखा। इसके बाद प्रेमचंद और उनके बड़े भाई रामशरण शर्मा और अब उनके पुत्र कृष्ण गोपाल शर्मा व अभय शर्मा भी इसी मंडली में आ गए हैं। यह मंडली कृष्णलीला का मंचन भी करती है।
रामलीला में रावण और कृष्णलीला में कंस
यूं तो शर्मा परिवार बहुमुखी प्रतिभा का धनी है, लेकिन घनश्याम शर्मा के अभिनय का लोहा मथुरा से लेकर पूरे देश में इस तरह के मंचन में माना जाता है। जहां तक रामलीला की बात है तो वे दशरथ, परशुराम और रावण तीनों का अभिनय करते हैं। जबकि, कृष्णलीला में वे कंस के रूप में खूब सराहे जाते हैं। एक और खास बात है कि इस परिवार के सभी सदस्यों को सारे संवाद कंठस्थ हैं।
'हारमोनियम ने तोड़ी राम-लक्ष्मण की जोड़ी'
रामलीला मंचन में लोगों का रुझान पहले से घटता जा रहा है। फिर चाहे वह अभिनय करने वाले हों या तबला व अन्य वाद्य यंत्र बजाने वाले कलाकार। इसका एक उदाहरण पुराना राजपुर में हो रही रामलीला में देखने को मिला। यहां हारमोनियम वादक की व्यवस्था न होने से 27 साल पुरानी राम-लक्ष्मण की जोड़ी तोड़नी पड़ी। लक्ष्मण बनने वाले कलाकार को ही हारमोनियम बजाने की जिम्मेदारी दी गई। जबकि उनका बड़ा भाई इस बार भी राम की भूमिका निभा रहा है।
श्री आदर्श रामलीला सभा राजपुर इस साल 70वीं बार रामलीला मंचन करा रही है। रायपुर के भड़ासी गांव निवासी अमीचंद 54 वर्ष से इस सभा के साथ जुड़े हुए हैं। 1965 से 1984 तक अमीचंद भारती ने रावण का किरदार निभाया, लेकिन इसके बाद उन्होंने हारमोनियम बजाने की जिम्मेदारी थाम ली। इसके बाद 1993 से अमीचंद के दो बेटे उपदेश चंद और गणेश चंद राम-लक्ष्मण की भूमिका निभाने लगे। बड़ा बेटा उपदेश राम तो छोटा बेटा गणेश लक्ष्मण का किरदार निभाता आ रहा था।
मगर, इस बार अमीचंद हारमोनियम बजाने नहीं आ सके और सभा के सामने यह संकट आ खड़ा हुआ कि हारमोनियम वादक कहां से लाया जाए? प्रोफेशनल लोगों से भी बात की, लेकिन इस बार कोई तैयार नहीं हुआ। इस पर गणेश चंद जो कि हारमोनियम बजाना अच्छी तरह जानते हैं, उनको यह जिम्मेदारी दी गई। अब गणेश हारमोनियम बजा रहे हैं, ऐसे में वे अपने बड़े भाई उपदेश के साथ अभिनय नहीं कर सके।
श्री आदर्श रामलीला सभा राजपुर इस साल 70वीं बार रामलीला मंचन करा रही है। रायपुर के भड़ासी गांव निवासी अमीचंद 54 वर्ष से इस सभा के साथ जुड़े हुए हैं। 1965 से 1984 तक अमीचंद भारती ने रावण का किरदार निभाया, लेकिन इसके बाद उन्होंने हारमोनियम बजाने की जिम्मेदारी थाम ली। इसके बाद 1993 से अमीचंद के दो बेटे उपदेश चंद और गणेश चंद राम-लक्ष्मण की भूमिका निभाने लगे। बड़ा बेटा उपदेश राम तो छोटा बेटा गणेश लक्ष्मण का किरदार निभाता आ रहा था।
मगर, इस बार अमीचंद हारमोनियम बजाने नहीं आ सके और सभा के सामने यह संकट आ खड़ा हुआ कि हारमोनियम वादक कहां से लाया जाए? प्रोफेशनल लोगों से भी बात की, लेकिन इस बार कोई तैयार नहीं हुआ। इस पर गणेश चंद जो कि हारमोनियम बजाना अच्छी तरह जानते हैं, उनको यह जिम्मेदारी दी गई। अब गणेश हारमोनियम बजा रहे हैं, ऐसे में वे अपने बड़े भाई उपदेश के साथ अभिनय नहीं कर सके।